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बीएस संवाददाता | रायपुर April 27, 2015 | http://hindi.business-standard.com/storypage.php?autono=101736

गैर सरकारी संगठन छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने खुलासा किया कि उसे कनहर बांध परियोजना में कई खामियों का पता चला है। करीब चार दशक बाद इस परियोजना को पुनर्जीवित किया गया है। इस परियोजना के दायरे में उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ के वे इलाके आएंगे, जो कनहर नदी के किनारे बसे हैं। कनहर, सोन नदी की सहायक नदी है, जो छत्तीसगढ़, झारखंड और उत्तर प्रदेश में बहती है। यह बांध परियोजना उस समय सुर्खियों में आई, जब पुलिस ने इसका विरोध कर रहे लोगों पर गोलियां चलाईं।

अध्ययन टीम का नेतृत्व करने वाले आलोक शुक्ला और सुधा भारद्वाज ने बताया, 'इस परियोजना की संकल्पना वर्ष 1976 में की गई थी और उत्तर प्रदेश व छत्तीसगढ़ सरकार इसे चार दशक पूर्व के नियमों के अनुसार ही निर्मित करना चाहती है।' उन्होंने बताया कि इस परियोजना का असर दोनों राज्यों के बड़े हिस्सों पर होगा। छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के अध्ययन के अनुसार अधिकारियों ने छत्तीसगढ़ की जनता को इस परियोजना के बारे में अंधेरे में रखा हुआ है। जल संसाधन विभाग के एक इंजीनियर ने ग्रामीणों को बताया कि  यह बांध बनने से महज 250 एकड़ जमीन ही पानी में डूबेगी, यह गलत है। उन्होंने बताया कि एक गांव में प्राप्त पोस्टर के अनुसार कनहर बांध परियोजना से छत्तीसगढ़ के 19 गांव पूरी तरह पानी में डूब जाएंगे, जबकि 8 आंशिक रूप से।

पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने कहा कि इस मामले में छत्तीसगढ़ सरकार का रवैया काफी संदेहास्पद है। माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव संजय पराते ने कहा, 'रिपोर्ट में बताया गया है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने एक छिपे हुए एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के साथ इस परियोजना पर हाथ मिलाया है।' उन्होंने बताया कि इस परियोजना से राज्य के लोगों को कोई फायदा नहीं होगा और इसे उद्योगपतियों की मदद के लिए निर्मित किया जा रहा है। शुक्ला ने बताया कि यह परियोजना पिछले करीब 40 वर्षों से ठंडे बस्ते में पड़ी हुई थी और हाल में इसके लिए नए सिरे से पर्यावरण संबंधी अनुमति लेकर व जमीन अधिग्रहण कर काम शुरू किया गया है।


Inventory of Traditional/Medicinal Plants in Mirzapur