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28th April, 2015 | http://naidunia.jagran.com/chhattisgarh/raipur-raipur-news-358255

रायपुर। कनहर बांध के निर्माण का फैसला 1980 में मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीपी सिंह और बिहार सरकार की आपसी सहमति से हुआ था। जो सहमति हो गई वो हो गई, यह पृष्ठ अब बंद हो गया, मैं बांध के निर्माण को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार के पूर्व सिंचाई मंत्री रामविचार नेताम के इस तर्क से सहमत हूं कि इस फैसले में छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार का कोई योगदान नहीं है, न ही मेरी कोई भूमिका है, क्योंकि उस वक्त मैं मंत्री की बात तो दूर, विधायक तक नहीं था। यह बातें अविभाजित मध्य प्रदेश के पूर्व सिंचाई मंत्री रामचंद्र सिंहदेव ने नईदुनिया के साथ खास बातचीत में कहीं। उन्होंने कहा कि कनहर एग्रीमेंट के तहत तीन बांध बनने हैं, जिनमें छत्तीसगढ़ में सामरी, यूपी में कनहर और झारखंड में भी कनहर नाम से एक अन्य बांध शामिल हैं। रामचंद्र सिंहदेव का कहना है कि जो भी फैसला उस वक्त की सरकारों ने किया, सोच समझ कर किया होगा। उस फैसले को बदलना बेहद मुश्किल है।

गौरतलब है कि भाजपा द्वारा कनहर निर्माण के लिए हुए अंतरराज्यीय अनुबंध का दोष कांग्रेस के सिर पर मढ़ा जाता रहा है। रामचंद्र सिंहदेव का कहना है कि अनुबंध के हिसाब से छत्तीसगढ़ में डूब क्षेत्र बहुत ज्यादा था। छत्तीसगढ़ सरकार के विरोध करने पर बांध की ऊंचाई कम कर दी गई। उन्होंने झारखंड में प्रस्तावित बांध के निर्माण से रामानुजगंज के डूब में आने की बात भी कही है।

इस बीच नर्मदा बचाओ आन्दोलन से जुड़ी समाजसेवी मेधा पाटकर ने उत्तर प्रदेश-छत्तीसगढ़ सीमा के उन इलाकों का दौरा किया है जो डूब क्षेत्र में आ रहे हैं। इसके अलावा उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मुलाकात की और उन्हें तात्कालिक तौर पर बांध का निर्माण रोकने को कहा। मेधा ने सीएम अखिलेश यादव को कहा है कि कनहर के 50 प्रतिशत विस्थापित आदिवासी हैं,जंगल और जमीन पर पहला हक उनका है, उन्हें हटाकर किसी प्रकार का निर्माण करना असंवैधानिक है। इसके पहले शनिवार को मेधा उत्तर प्रदेश पुलिस की चाक-चौबंद सुरक्षा व्यवस्था को धता बताते हुए देर रात सीमावर्ती डूब इलाकों में पहुंचीं और वहां उन्होंने विस्थापितों से मुलाकात की। उनके साथ कनहर बचाओ आन्दोलन के महेशानंद भी थे। मेधा का कहना है कि 1981 के अनापत्ति प्रमाणपत्र के आधार पर 34 साल बाद किसी बांध का निर्माण करना अतार्किक है। पुलिस द्वारा विस्थापितों पर की गई फाइरिंग और लाठी चार्ज की उन्होंने निंदा करते हुए कहा कि मैंने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से उक्त मामले की जांच कराने को कहा है। उन्होंने आश्वस्त किया है कि वो पूरे मामले की जानकारी ले रहे हैं, इस मामले में ठोस कदम उठाएंगे। मेधा का कहना है कि सिंचाई परियोजनाओं में विस्थापितों को भूमि के बदले में भूमि देने का कानून है मगर छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश में इन कानूनों की धज्जिायां उड़ाई जा रही है।

मेधा पाटेकर ने कहा कि बांध से सिर्फ उत्तर प्रदेश नहीं प्रभावित हो रहा, बल्कि छत्तीसगढ़ भी बुरी तरह प्रभावित हो रहा है, लेकिन सरकार खामोश बैठी है। परियोजना की शुरुआत ही गलत है। न तो इन्वाइरमेंट क्लियरेंस लिया गया न ही पुनर्वास की कोई नीति घोषित हुई। बस आनन-फानन में निर्माण शुरू कर दिया गया। मेधा पाटकर कहती हैं कि मैंने पूरी परियोजना का अध्ययन किया है। छत्तीसगढ़ के जो इलाके डूब क्षेत्र में आ रहे हैं, उनमें 50 फीसदी से ज्यादा अनुसूचित जनजाति के लोग रह रहे हैं। ऐसे में ग्राम सभाओं से बिना इजाजत के बांध का निर्माण कैसे संभव है ? वो कहती हैं कि उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ में अलग -अलग सरकारें हैं, लेकिन सोच एक जैसी है। उत्तर प्रदेश सरकार बुनियादी कानून ही नहीं मान रही है, जबकि छत्तीसगढ़ में पेसा जैसे कानून मौजूद है, मगर सरकार अपने लोगों के ही अधिकारों के संरक्षण में नाकामयाब रही है। वो कहती हैं कि कनहर बांध के डूब क्षेत्र में भूमि अधिग्रहण कानून 2013 लागू होता है। जब भूमि का अधिग्रहण 1976 से 81 के बीच किया गया और उसके बाद पांच सालों तक कोई निर्माण नहीं हुआ तो कानून के तहत निर्माण संभव ही नहीं है।

चौंकाने वाली खबर है कि न सिर्फ उत्तर प्रदेश, बल्कि छत्तीसगढ़ में कनहर के डूब क्षेत्र में तथाकथित अधिगृहीत जमीन पर आदिवासी किसान न सिर्फ काबिज रहे हैं, बल्कि खेती किसानी भी करते रहे हैं और उस जमीन पर इसके आधार पर बैंकों से कर्ज भी लिया है। इन सबका रिकॉर्ड दोनों ही राज्यों के राजस्व रिकॉर्ड में है। ऐसे में यह सवाल महत्वपूर्ण हो जाता है कि बैंकों और अन्य संस्थाओं ने किस आधार पर किसानों को कर्ज दिया, जबकि यह भूमि 35 साल पहले अधिगृहीत की जा चुकी है और जिसके आधार पर उत्तर प्रदेश सरकार बांध निर्माण का दावा कर रही है।

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