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posted by: हस्तक्षेप 2015/01/12 | http://goo.gl/F2UVRl

प्रशासन विस्थापितों से वार्ता कर समस्याओं का करे निराकरण

राबर्ट्सगंज-सोनभद्र। आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट(आइपीएफ) ने मानवाधिकार आयोग को पत्र भेज कर कनहर विस्थापित-आदिवासियों की समस्याओं का निराकरण कराने और उनके न्यूनतम जीवन निर्वाह हेतु जीविकोपार्जन का इंतजाम करने की मांग की है।

पत्र में कहा गया है कि उ0प्र0 के सोनभद्र जनपद में कनहर सिंचाई परियोजना के लिए निर्मित किये जा रहे कनहर डैम से विस्थापित हो रहे हजारों आदिवासी परिवारों की जीवन निर्वाह की उ0प्र0 सरकार द्वारा कोई समुचित इंतजाम नही किया गया है। बता दें कि हजारों आदिवासी भीषण सर्दी में कनहर-पागन नदी के तट पर 23 दिसम्बर 2014 से अनिश्चितकालीन धरना दे रहे हैं। इन आदिवासियों के जीवन निर्वाह का सबसे बड़ा स्रोत वन संपदा है, परन्तु उ0प्र0 सरकार द्वारा जंगल पर निर्भर व पुश्तैनी तौर पर जोत-कोड़ कर रहे जमीनों के एवज में कोई भी मुआवजा देने को तैयार नही है। पत्र में कहा गया है कि उक्त डैम का शिलान्यास 6 अक्टूबर 1976 को उ0प्र0 के तत्कालीन मुख्य मंत्री नारायण दत्त तिवारी ने किया था। उस समय किये गये सर्वे में 2186 हेक्टेयर जलमग्न क्षेत्र दर्शाया गया है जबकि 1984 के सर्वे में 2925 हेक्टेयर व वर्तमान में 4331.5 हेक्टेयर जलमग्न क्षेत्र दर्शाया जा रहा है। शिलान्यास के समय सरकार द्वारा जमीन के बदले जमीन व रोजगार देने का वायदा किया था। क्योंकि शिलान्यास के समय कनहर डैम की क्षमता को बढ़ा कर रिहन्द जलाशय में पानी देने की योजना विचाराधीन थी। ऐसी स्थिति में आदिवासियों में भय की स्थिति है और उन्हें नही पता कि कितना क्षेत्र जलमग्न होगा। इसलिए पुनः सर्वे कराना और जलाशय क्षेत्र का सीमांकन कराना(जलाशय की सीमा पर पिलर लगाना) अति आवश्यक है जिससे यह पता चल सके कि अमुक क्षेत्र जलमग्न क्षेत्र में है अथवा नही। आपको यह भी बताना जरूरी है कि पूर्व में भी इस क्षेत्र में लाखों परिवार विस्थापित हुए है और उनकी जीविकोपार्जन का समुचित इंतजाम न किये जाने से यहां का आदिवासी आज गेठी कंदा जैसी जहरीली जड़ को खाने को अभिशप्त है एवं रोजगार के अभाव में बड़े पैमाने पर पलायन हो रहा है। ऐसी स्थिति में आयोग से अपील की गयी है कि उ0प्र0 सरकार को निर्देशित कर आदिवासियों के न्यूनतम जीवन निर्वाह योग्य जाविकोपार्जन की गारण्टी कराने का कष्ट करें।

आइपीएफ ने कहा है कि कनहर डैम बनना जितना जरूरी है उतना ही आवश्यक विस्थापितों-आदिवासियों के जीविकोपार्जन का इंतजाम करना भी है।


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